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प्रशासन कि मजबूरी-महिलाओ की जिम्मेदारी ?

Indian Youth
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गुडगाँव के एक बार में काम करने वाली लड़की के केस के समाधान के रूप में वहां की पुलिस ने एक फरमान जारी किया था की महिलाओ को रात के ८ बजे के बाद ऑफिस में न रोका जाये. इस पर काफी चर्चा हुई कुछ लोग इसके समर्थन में थे और कुछ इसके विरोध में. आज मैंने एक लेख पढ़ा जिसमे महिलाओ को शोषण से बचने के लिए कुछ सुझाव दिए गए थे. वो सुझाव मुझे कुछ हद तक बंदिशों की तरह लगे.साथ में ये भी बताया गया था कि हमें अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह से प्रशासन के भरोसे नहीं रहना चाहिए जो काफी हद तक सही भी है परन्तु इसे प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों से बचने का रास्ता नहीं बनाना चाहिए.
लिखा गया था कि महिलाओ को उत्तेजक वस्त्र नहीं पहनने चाहिए. लेकिन शोषण तो उन महिलाओ या लडकियों का भी होता है जो छोटे शहरों या झोपड़ियो में रहती हैं, जिनके पास पहनने के लिए साधारण भारतीय वस्त्र ही होते हैं. अगर सिर्फ महिलाओ के वस्त्र ही इस शोषण का कारण हैं तो फिर इन लडकियों के साथ ऐसा क्यों होता है जो न तो किसी बड़े मोंल में जाती है न ही किसी बार में और न ही कथित तौर पर भड़काऊ वस्त्र पहनती हैं.
दूसरा सुझाव था कि महिलाओ को किसी तरह का लड़ने का फन सीखना चाहिए. कितने ही शहर हैं भारत में जहाँ किसी भी तरह का कोई भी आत्मरक्षा या लड़ने का फन सिखाने के लिए कोई भी क्लास या इंस्टिट्यूट नहीं है. कुछ स्कूल हैं जहाँ ऐसी कला बच्चों को सिखाई जाती है पर उसके लिए आपके माता पिता के पास इतना पैसा होना चाहिए कि वो आपको या तो अच्छे से प्राइवेट स्कूल में भर्ती करा सके या फिर ऐसी किसी क्लास में. पर यहाँ भी जो लोग गरीब हैं और ये सब नहीं अफ्फोर्ड कर सकते हैं. वो कृपया अपने लिए कोई उम्मीद न रखे. क्योकि प्रशासन बेचारा इतने सारे लोगो के लिए कहाँ से इंतज़ाम कर पायेगा.
तीसरा सुझाव था कि महिलाएं अपने पर्स में मिर्ची का पावडर रखा करें.ये एक अच्छा तरीका हो सकता है अपने बचाव का जो कि हर महिला कर सकती है और जो लोग सक्षम है वो आधुनिक उपकरणों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
महिलाओ से ये भी कहा जाता है कि वो रात में अकेले कहीं न जायें. क्योकि उनके ऊपर हमला हो सकता है और प्रशासन सभी को हर वक़्त सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता है.
मेरा सवाल ये है कि १२१ करोड़ की आबादी में लगभग ४३ करोड़ की श्रम क्षमता वाले इस देश में जब प्रशासन एक ख़ास व्यक्ति को १० १० लोगो कि सुरक्षा प्रदान कर सकता है तो फिर ५० ६० लोगों वाली एक गली में १ आदमी कि भी सुरक्षा प्रदान कर पाने में सक्षम नहीं है.
और अगर ऐसा ही है तो फिर लगता है कुछ समय के बाद चोरी डकैती के केसों में भी पुलिस कहने लग जाएगी कि सभी लोग अपने घरो और दुकानों के लिए गार्ड का इंतजाम खुद करें. प्रशासन सभी की निगरानी नहीं कर सकता. और ये सब हमारा प्रशासन उस दौर में कह रहा है जब तकनीक हर घर तक पहुचने के काबिल है. लेकिन फिर भी हमारे देश में कहीं पर भी सीसीटीवी कैमरा नहीं दिखते हैं. और जहाँ हैं भी वहां भी न के बराबर जैसा की एक केस में देखा गया था की कैमरा होने के बावजूद वहां की फुटेज नहीं मिल पायी थी क्योकि कैमरा का रुख किसी और तरफ था.
तो क्या हमारा प्रशासन सिर्फ मजबूरी का राग ही गाता रहेगा या फिर इन समस्याओं को दूर करने के लिए वो लोग कुछ करेंगे जो बड़ी बड़ी परीक्षाओ को पास करके,इंटरव्यू में बड़े बड़े विचार रखकर बड़ी बड़ी पोस्ट्स पर अधिकारी बनकर देश के विकास का जिम्मा अपने कन्धों पर उठाते हैं?

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